भाई साहब क्या आप चाय की दुकान ढूढ़ रहे हैं? फिल्म सिटी में दोस्त के साथ भटकता देख एक अजनबी ने पूछा। हमारे जवाब देने से पहले ही उसे अपनी बात आगे बढ़ा दी। मानो उसे पक्का यक़ीन था कि वो सही आदमी से सही सवाल पूछ बैठा है। वो हमें चाय की दुकान का पता समझाने लगा। मैं उसकी बात इतनी ध्यान से सुन रहा था जैसे वो किसी ख़जाने का नक्शा बता रहा हो। क़रीब 15 मिनट तक उसके बताए रास्ते पर चलते हुए हमें वो ख़ज़ाना मिल गया। चाय की वो दुकान एक प्लॉट के अंदर थी, जहां निर्माण कार्य चल रहा था और जिसके बाहर लगा गेट ये सुनिश्चित करने के लिए बंद रखा गया था कि पुलिसवालों की नज़र इसपर न पड़ जाए।
नोएडा फिल्म सिटी में पुलिस ने इस तरह की सारी दुकानें हटवा दी हैं, जहां लोग चाय, सोट्टे या गुटखे की तलब मिटाने के लिए आया करते थे। इनके अलावा सड़क के किनारे लगने वाली खाने-पीने की ठेलेनुमा दुकानें भी अब फिल्म सिटी में नहीं दिखाई दे रही हैं। कुछ दिनों पहले तक फिल्म सिटी में इस तरह की क़रीब 50 दुकानें चलती थीं, जिनके आसपास हर वक़्त मीडियाकर्मियों का मजमा लगा रहता था। ऐसी ही एक दुकान चलाने वाला गुलमोहर भी आजकल बेरोज़गार हो गया है। कहता है कि पुलिसवाले अब दुकान नहीं लगने दे रहे। चोरी-छिपे सामान बेचते भी देख लिया तो मारते हैं।
ये सच है कि फिल्म सिटी में चलने वाली ये दुकानें अनाधिकृत, अवैध, अतिक्रमण करने वाली यानी हर तरह से ‘अ’ सर्टिफिकेट वाली थीं। लेकिन अब तक मज़े से चल रही इन दुकानों को अचानक हटवाने की क्या ज़रूरत आ गई। इस बारे में मैंने नोएडा के एसपी सिटी अशोक त्रिपाठी से पूछा तो उनका जवाब था कि ऐसा सुरक्षा के मद्देनज़र किया गया है। उनके मुताबिक फिल्म सिटी में चलने वाले न्यूज़ चैनल आतंकवादियों के निशाने पर हैं और इस लिहाज़ से सड़क के किनारे लगने वाले ठेले आतंकियों की मददगार साबित हो सकते हैं।
पुलिस का ये क़दम तकनीकी तौर पर सही मालूम पड़ता है, लेकिन इससे प्रभावित हुए लोग कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। चाय का ठेला लगाने वाला त्रिपुरारी कहता है कि ये सब उस चैनल के प्रोगाम के चलते हुआ है। त्रिपुरारी स्टार प्लस पर हाल ही में शुरु हुए किरण बेदी के प्रोगाम आपकी कचहरी की बात कर रहा था। इसकी शूटिंग कुछ महीने पहले फिल्म सिटी के एक स्टूडियो में हुई थी, जिसमें नोएडा के पुलिस अधिकारी और आम लोग मौजूद थे। त्रिपुरारी कहता है कि शो में फिल्म सिटी का एक चाय बेचने वाला भी मौजूद था, जिसने पुलिसवालों पर पैसे वसूलने के आरोप लगाए। इसके बाद पुलिस की ख़ूब किरकिरी हुआ, और नतीजे में सबकी दुकानें उठवा दी गईं।
देखा जाए तो इस क़दम से इन चायवालों का ही नुकसान नहीं हो रहा, दुकानें हटवाने वाली पुलिस को भी चपत लगी है। दुकानदारों के मुताबिक पुलिसवाले हर दुकान से रोज़ाना 20 रुपये 200 रुपये की वसूली करते थे। फिल्मसिटी की छोटी-बड़ी लगभग 50 अवैध दुकानों से महीने की वसूली लाखों तक पहुंच जाती थी। मगर ये रक़म थाने तक नहीं पहुंच पाती थी, चौकी में ही बंट जाती थी। एसएचओ, सीओ और उससे ऊपर के पुलिसवालों को वैसे भी इनसे कुछ नहीं मिल रहा था। यही वजह है कि उन्होंने अपने ऊपर से बदनामी का दाग़ धो लिया। वरना पूरे नोएडा से इस तरह की दुकानें न हटवा दी जातीं।
बहरहाल चाय के इस चक्कर में उन चयेड़ियों का भी नुकसान हो रहा है, जिनके लिए चाय सिर्फ पीने की चीज़ नहीं है। ऐसा होता तो ठंड में ठिठुरते हुए बाहर निकलने से अच्छा एसी कैंटीन में चाय पीकर ख़ुश नहीं हो जाते। कुछ लोगों को बाहर की चाय ज़्यादा टेस्ट दे सकती है लेकिन इससे बड़ी हक़ीक़त ये है कि बाक़ी जगहों की तरह ही फिल्म सिटी में भी चाय के ठेलों पर लोग सिर्फ चाय पीने के लिए ही नहीं जाते। चाय और सोट्टे के बीच दफ्तर की राजनीति से लेकर मंगल पर पानी के सबूतों तक की चर्चा होती है, जो शायद नो स्मोकिंग ज़ोन कैंटीन की चिकनी कुर्सियों पर बैठकर मुमकिन नहीं है।
मगर अब इस बहाने कैंटीन चलाने वाले ख़ुश हैं। शाम को लिट्टी, समोसा खाने के लिए बाहर जाने वाले मीडियाकर्मियों को अब टोकन लेकर कैंटीन की मेन्यू के हिसाब से ही चलना पड़ रहा है। नतीजतन इन कैंटीनों में मोनोपोली टाइप सिचुएशन हो गई है। लेकिन जो लोग समझौता करने में सहज नहीं हैं, वो रेगिस्तान में जज़ीरा तलाशने के लिए निकल ही पड़ते हैं। ऐसा ही एक शख़्स हमें दिखा जब हम चाय पीकर लौट रहे थे, और हमें उस सिलसिले को आगे बढ़ाने का मौका मिल गया जो हमारे लिए उस अजनबी ने शुरु किया था। चाय की दुकान ढूढ़ने और चाय पीने में उतनी ख़ुशी नहीं हुई थी, जितनी उस शख़्स को पता बताकर हो रही थी।
विनोद अग्रहरि
Sunday, December 21, 2008
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अच्छा ब्लोग है जारी रखिये और वर्ड वेरिफिकेशन हटाइए वरना टिप्पणियों को तरसेंगे।
ReplyDeleteबहुत सुंदर...आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है.....आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे .....हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeleteविनोद जी आपका स्वागत है। लिखते रहें
ReplyDeleteहिन्दी चिट्ठाजगत में आपका हार्दिक स्वागत है.
ReplyDeleteखूब लिखें,अच्छा लिखें
achcha likhte rahe aur bahut achacha padhte rahe....khush rahen
ReplyDeleteKavi Deepak Sharma
http://www.kavideepaksharma.co.in
http://shayardeepaksharma.blogspot.com
accha laga aapka blog phadkar..isi tarh nayi nayi jaankaariyaan dete rahe....
ReplyDeleteBhai Ye to Hum Jaise Logo pe Julm Hain Kyu Ki Hum Log TO Chaye Kam Aur GF 10 Ke Liye Jaada Jaane Jaate Hain .... Vasi Kise Ne Kaha Hain Ki
ReplyDelete"Smoking Karna Saamajik BUraai Hain Isileye Main Ise Pe Pe Ke Khatam Kar na Chata Ho...."
Galtiyon Ke Liye ChhamaPrarthi Ho ........