Friday, January 30, 2009

देशभक्तों को शुभकामना

आप सभी पढ़ने वालों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। शुभकामना देना दुनिया का सबसे आसान काम है। आमतौर लोग सिर्फ लेना जानते हैं, देना नहीं। लेकिन बात जब शुभकामना देने की हो, तो लोग दिल खोल कर देते हैं। मैसेज पे मैसेज, सड़कों-चौराहों पर लगी होर्डिंग। ज़्यादातर लोग इन शुभकामनाओं के ज़रिये अपना उल्लू सीधा करते हैं। ग़ौर कीजिए, पिछले साल में होली, पंद्रह अगस्त, दीपावली, ईद, क्रिसमस और नए साल पर कितने लोगों ने आपको शुभकामनाएं दी होंगी। क्या वो सभी आपके शुभचिंतक ही हैं, या फिर कितने लोग दिल से शुभकामनाएं देते हैं, ये भी तय करना मुश्किल है।

शुभकामना संदेश की ताक़त को सबसे ज़्यादा भुना रहे हैं नेता। सड़कों पर लगी होर्डिंग्स पर इनके शुभकामना संदेश कुछ इस तरह लिखे होते हैं- आप सभी को दीपावली, ईद, छठ पर्व, क्रिसमस और नए साल की ढेरों शुभकामनाएं। ध्यान दीजिएगा क्या वाकई इन्होंने ऐसा कोई काम किया है, जिससे आपकी होली-दीपावली शुभ हो सके। हां मगर, एक शुभकामना संदेश से उनके कई हित सध गए। समाज के सभी वर्गों को बधाई देकर वो सेक्यूलर हो गए। दीपावली से नए साल तक अब यानी कम दो-तीन महीनों तक संदेश की प्रांसगिकता बनी रहेगी, सो बोर्ड बदलवाने की ज़रूरत नहीं। होर्डिंग के ऊपर लगी पार्टी प्रमुखों की तस्वीरों से उन्होंने अपनी स्वामीभक्ति भी दर्ज करा दी।

न तो इस तरह की होर्डिंग्स पर नगम निगम को कोई टैक्स चुकाया जाता है, और न ही निगम इन अवैध होर्डिंग्स को हटाने में दिलचस्पी रखता है। अब भले ही आप इनकी शुभकामनाएं लेना न चाहें क्योंकि आपको इन शुभकामनाओं से कुछ मिलना तो है नहीं। लेकिन फिर भी नेताओं की होर्डिंग्स चौराहों पर लगी रहेंगी, क्योंकि शुभकामना देने उनका क्या जा रहा है।

गणतंत्र दिवस पर भी शुभकामनाओं की बौछार हुई। लोगों ने एक-दूसरे को देशभक्ति से भरे संदेश भेजे। देशभक्ति भी सेक्यूलरिज़म की तरह बड़ा डिप्लोमैटिक टाइप शब्द है। गणतंत्र दिवस पर मैं अपनी छत पर तिरंगा नहीं फहरा पाया। कुछ लोगों की नज़रों में देशभक्त न कहलाने का एक क्राइटेरिया मैंने पूरा कर लिया। मैंने किसी को गणतंत्र दिवस का एसएमएस नहीं किया। शायद इसलिए भी मैं देशभक्त नहीं। देशभक्ति है क्या और देशभक्त कौन है, ये तय करना बड़ा अजीब है।

चीन ने अपने देशवासियों से कहा है कि मंदी के दौर में वो पैसे ख़ूब ख़र्च करें। संकट की इस घड़ी में जो नागरिक अपनी सारी कमाई ख़र्च करेगा, वही देशभक्त है। हमारे यहां देशभक्ति के मानदंड कभी इस तरह के नहीं रहे। 26 जनवरी जैसे दिनों को हम शहीदों को कुछ देर तक शहीदों की याद में रोमांचित होकर हम ख़ुद को देशभक्त मानने लगते हैं। देशभक्त होने का ये बड़ा आसान और प्राकृतिक तरीका है। इस लिहाज़ से हर देशवासी ख़ुद को देशभक्त कह सकता है।

इनमें वो देशभक्त भी शामिल हैं जो कर की चोरी करते हैं, ग़रीबों का राशन खा जाते हैं, वन्य जीवों की हत्या करते हैं, बच्चों का बचपन बर्बाद करते हैं, जंगली लकड़ियों की तस्करी करते, बिजली की चोरी करते हैं और ग़ैरप्रांतीय-ग़ैरमहज़बी-ग़ैरजातीय लोगों से भेदभाव करते हैं हैं। इन सभी कामों से क्या देश या देश की छवि को नुकसान नहीं होता। देश को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से नुकसान पहुंचाने वाले देशभक्त कैसे हो सकते हैं। दरअसल देशभक्त होना उतना आसान काम नहीं जितना हम लोग समझते हैं।

देशभक्त होने के लिए देश को सबसे ऊपर रखना होगा। अपने छोटे-छोटे हितों के बारे में सोचने से पहले देश पर होने वाले उसके असर को सोचना होगा। ऐसा करना हर देशभक्त के बस की बात नहीं। इसके लिए हिम्मत चाहिए, त्याग चाहिए। सिद्धांत की ये बातें करने में काफी मुश्किल हैं, लेकिन कम से कम फंडा तो क्लियर होना ही चाहिए। ताकि हमें ये तय करने में दिक़्क़त न हो कि क्या हम वाकई देशभक्त कहलाने के लायक हैं। सच्चा देशभक्त ही देश और देशवासियों का शुभेच्छु हो सकता है, और तब शुभकामना दिए बग़ैर भी लोगों का शुभ हो सकेगा।

आपका विनोद अग्रहरि

1 comment:

  1. देशभक्त होने के लिए देश को सबसे ऊपर रखना होगा। अपने छोटे-छोटे हितों के बारे में सोचने से पहले देश पर होने वाले उसके असर को सोचना होगा .......बहुत सही कहा।

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