एक और अख़बार छपना बंद हो गया, एक और न्यूज़ चैनल बिक गया। कुछ वक़्त पहले जब इन्होंने शुरुआत की थी, तो दुनिया से लड़ने का दंभ भर रहे थे। समाज से, भ्रष्टाचार से, आतंकवाद से, संप्रदायवाद से... लेकिन आज ये सभी परास्त हो रहे हैं। किससे... मंदी से। मंदी के आगे ये लड़ाके बेबस हैं। कलम की धार कमज़ोर पड़ जाती है, दिमाग़ काम करना बंद कर देता है जब बाज़ार में मुनाफे का गणित गड़बड़ा जाता है।
हाल की कुछ घटनाएं उन थोड़े-बहुत लोगों का भ्रम दूर करने के लिए काफी हैं जिन्हें अब भी लगता है कि पत्रकारिता एक मिशन है, व्यवसाय नहीं। दुनिया बदल गई है, पत्रकारिता का स्वरूप भी बदल गया है। आज न तो बिना मुनाफे के कोई मीडिया संगठन चल सकता है, और न ही बिना पैसे के कोई पत्रकार काम करना चाहेगा।
तो क्या अख़बार या चैनल चलाने और एक दुकान चलाने में कोई फर्क़ रह गया है? कोई मालिकों से पूछे कि अगर मुनाफा कमाना ही मक़सद था, तो चैनल या अख़बार को ही धंधा क्यों बनाया? या फिर वो पत्रकार जवाब दें जिन्होंने अच्छा पैसा कमाने और ऐशोआराम की ज़िंदगी जीने के लिए पत्रकारिता को चुना।
इस बात में कोई शक़ नहीं कि हर संगठन की गाड़ी मुनाफे के इंजन से चलती है। मुनाफा हो, अच्छी बात है। कंपनी का भला होगा, उसमें काम करने वालों लोगों की ज़िंदगी बेहतर होगी। लेकिन क्या मुनाफा ही मीडिया संगठनों का एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए? जब दूसरों की दुकानें बंद हो रही थी, लोग बेनौकरी हो रहे थे, तब तो ख़ूब शोरगुल मचाया गया। अब अपने कर्मचारियों की चिंता क्या मीडिया संगठनों को है?
अख़बार तब भी छप रहे थे, जब आपातकाल लगा था। अख़बारों को सरकारी विज्ञापन मिलने बंद हो गए थे, लेकिन कलम चलती रही। आज तो सारा खेल बाज़ारवाद का है। चाहे चैनल हों, अख़बार हों या फिर उनमें काम करने वाले। चैनल या अख़बार को मुनाफा कम होगा, तो छंटनी, नुकसान होगा तो बंदी। पत्रकारों के लिए जहां अच्छा पैसा, वहां नौकरी।
लेकिन इन सबके बावजूद सैकड़ों न्यूज़ चैनल आ रहे हैं। कई अख़बार शुरु हो रहे हैं। इनका मक़सद भी दूसरों से अलग नहीं है। इनकी आड़ में उद्योगपतियों के बाक़ी व्यवसाय चमकेंगे। तो फिर हम किस पत्रकारिता की बात करते हैं? क्यों हम कहते हैं कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है? क्या बाक़ी तीन स्तंभ भी मुनाफे के लिए चलते हैं?
विनोद अग्रहरि
आपका लेख महत्वपूर्ण है। पत्रकारिता मंदी और बाजारवाद की शिकार हो चुकी है।
ReplyDeleteआखिर अखबार चलाने के लिये पैसा तो चाहिये ही और सरकारों को ये ध्यान देना चाहिये।
ReplyDeletebikkul theek kaha aapne kaisi. patrakarita kaisa mission?
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